'बस, कट रही है ज़िन्दगी' दूसरी ओर से जवाब आया। हॅंस कर फिर मैंने भी लिख दिया, 'ज़िन्दगी काट ही रहे हैं, जी नहीं रहे।' जानते नहीं एक-दूसरे को उतने करीब से दोनों फिर भी ईमानदारी की ये ज़रा सी छींट उछल कर, अनजाने ही, कुछ समान, कुछ बिलकुल अलग बँटे दुःख के रंग के निशाँ ज़रा हलके कर जाती है। 'बस, कट रही है ज़िन्दगी' यह साधारण सा वाक्य ज़रिया है लोगों के बीच दिल को ढका रखकर नग्न कर देने का, कहने का, की न तुम अकेले, और आशा करते हैं कि न हम भी; शायद कोई किसी दिन पूछ ही ले कि भाई क्यों कट रही ज़िन्दगी तुम्हारी इस कदर? शायद किसी दिन हम भी बताने की हिम्मत जोड़ पाएं। बस, कट रही है ज़िन्दगी उस पेड़ की भाँति जिसके पास कहीं और जाने को नहीं, जिसकी रगें बारूद की तरह इतनी सूख चुकी हैं की अब काटने पर लहू तक नही बहता; उस पेड़ ने अपना विनाश-लिप्त भाग्य अब चुपचाप गले लगा लिया है। बस, कट रही है ज़िन्दगी हमारे जिस्म की भाँति इन काले-नीले पन्नों के बीच जिनके ज़रिये सुन लेते हैं, कह लेते हैं, मगर कर नहीं पाते जैसे हम पेड़ और वो इंसाँ हो। बस, कट रही है ज़िन्दगी हम सब थके हारे कवियों की जो अपने दुःख-दर्द से कुछ सुन्दर बनाने की कोशिश में हैं, कोशिश में हैं अपनी रचनाओं के ज़रिये ही जी लेने की, उस छुपती-छुपाती ख़ुशी से गुफ़्तगू कर लेने की जिसकी आस में बस, कट रही है ज़िन्दगी।
10th April/ (7/30)/ Seems like I can write in Hindi only in April
One stanza inspired by this PoemsIndia prompt
This. This right here. Whatever this says. Brilliant.
LikeLike
😂😂😂😂 You, sir, have more faith in my writing than I do.
LikeLiked by 1 person